अमृत समान होता है धैर्य का फल

Person practicing patience in challenging situation

कठिन परिस्थिति में व्यक्ति की सहनशीलता की अवस्था है धैर्य। जब कोई व्यक्ति क्रोध, खिज़ जैसी नकारात्मक अभिव्यक्तियों पर विजय प्राप्त कर लेता है तभी व्यक्ति के भीतर इसकी उत्पति होती हैं।

हम सभी जानते हैं कि धैर्य के अत्यधिक लाभ हैं, परंतु एक दूसरी सच्चाई यह है कि यह हर किसी के व्यक्तित्व में शामिल नहीं हो पाता है?

एक कार के पीछे किसी ने लिखा हुआ था - प्रभु, मुझे धैर्य देना, परंतु जरा जल्दी देना। धैर्य के मूल में प्रेम तथा ज्ञान है। उदाहरण के लिए हवाई जहाज में बड़े से बड़ा स्मोकर भी धैर्य रखता है।

क्योंकि उसे भली भांति ज्ञात होता है कि अगर यहां वह स्मोकिंग करेगा तो उसे इसका भारी जुर्माना भुगतना पड़ सकता है। किंतु जब वही व्यक्ति किसी अन्य जगह पर हो, तो उसे हर थोड़ी देर में स्मोकिंग की तलब होती हैं, वह ऐसा दर्शाता हैं मानो उसे जीने के लिए ऑक्सीजन की नहीं बल्कि स्मोक करने की जरूरत है।

यह एक तरह की विनाशकारी मानसिकता है जो व्यक्ति स्वयं विकसित करता है, यह जानते हुए भी की इसके क्या परिणाम हो सकते हैं या उसे इसका कितना भारी ख़ामियाजा उठाना पड़ सकता है।

आज हम सभी जिस दौर से गुजर रहे हैं उसमें धैर्य केवल एक शब्द बन कर रह गया है, और हमारे वास्तविक जीवन में लिया अति दुर्लभ हो चुका है। मगर आज भी केवल वही व्यक्ति समाज या देश में श्रेष्ठतम स्थिति पर पहुंच पाता है जिसने अपने क्रोध पर विजय प्राप्त किया हो।

जिस व्यक्ति ने अपने क्रोध पर विजय प्राप्त कर लिया हो, वह बड़ी से बड़ी बात या घटना के क्रम में भी अपना धैर्य नहीं खोता।

क्योंकि वह जानता है कि क्रोध से सिर्फ नुकसान होता है, इससे कभी किसी का भला नहीं हो सकता।

गीता के अध्ययाय 18 में श्री कृष्ण कहते हैं - सात्विक सुख शुरुआत में विष के समान है, लेकिन अंत में अमृत समान हो जाता है।

धैर्य रखिए, ज्ञान लीजिए, विवेक बढ़ाइए, तथा अपने परिवार से प्रेम कीजिए। धैर्य आपको असीम ऊँचाइयों पर पहुँचाएगा, अन्यथा मार्शमेलिन के प्रयोग की तरह छोटी समस्या में बह गए, तो न इधर के रहेंगे, न उधर के।

इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको बस यह बताना चाहतें हैं कि धैर्य, प्रेम, और ज्ञान एक सजीव और संतुलित जीवन का निर्माण कर सकते हैं, और इन गुणों का संगम हमें आत्मिक एवं सामाजिक समृद्धि की दिशा में लेकर जा सकता है।

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